वतन की एक आवाज




राजमहल को शर्म नहीं है घायल होती धाती पर,

भारत मुर्दाबाद लिखा है श्रीनगर की छाती पर ;

मन करता है फूल चढ़ा दूं लोकतंत्र की अर्थी पर,

भारत के बेटे निर्वासित हैं अपनी ही धरती पर l

वे घाटी से खेल रहे हैं गैरों के बलबूतेपर,
जिनकी नाक टिकी रहती है पाकिस्तानी जूतों पर !

माओवादियों को साथी बनाकर वनाचल से खेलें वो,
वोटों के खातिर, अपने लोगों के प्राण तक ले लें वो ;

अब केवल आवश्यकता है हिम्मत की,खुद्दारी की,
दिल्ली में मोदी जी को मोहलत दे दो तैय्यारी की l

सेना को आदेश थमा दो, घाटी ग़ैर नहीं होगी,
जहाँ तिरंगा नहीं मिलेगा उनकी खैर नहीं होगी.....
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3 comments

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Anonymous
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Anonymous
admin
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Anonymous
admin
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