काश सचमुच हो पाता



मुल्क तेरी बर्बादी के आसार
नज़र आते है ,
चोरों के संग पहरेदार
नज़र आते है

ये अंधेरा कैसे मिटे ,
तू ही बता ऐ आसमाँ ,
रोशनी के दुश्मन चौकीदार
नज़र आते है

हर गली में, हर सड़क पे,
मौन पड़ी है
ज़िंदगी,
हर जगह समसान से हालात
नज़र आते है

सत्ता से समझौता करके
बिक गयी है लेखनी,
ख़बरों को सिर्फ अब
बाज़ार नज़र आते है

सच का साथ देना भी बन
गया है जुर्म अब,
सच्चे ही आज गुनाहगार
नज़र आते है

देश की हिफाज़त सौंपी है
जिनके हाथों मे,
वे ही आज गद्दार
नज़र आते है

खंड खंड मे खंडित
भारत रो रहा है ज़ोरों से ,
हर जाति, हर धर्म के,
ठेकेदार नज़र आते हैँ ।
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