हर कोई नायक ढूढता है लेकिन स्यवं नायक नहीं बनना चाहता है ! हर कोई दुसरे में श्रेष्ठता ढूढता है, लेकिन स्वय श्रेष्ठ नहीं बनना चाहता ! यदि दुसरे में श्रेष्ठता ढूढनी है, तो पहले हम स्वय श्रेष्ठ बने !
प्रत्येक व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी दूसरो पे डालना चाहता है! दरअसल, नायक बनने के लिए हमें कई बुरी आदतों को छोरना पड़ता है और कई अच्छी आदतों के बिज स्वंय में डालना पड़ता है! यह कोई आसान कार्य नहीं, बल्कि कठिन कार्य है, हम यह सोच कर जीते है कि कोई विशेष ब्यक्ति देश समाज का उद्धार करेगा! श्रीमद्भागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते है कि एक ही ब्यक्ति आप का उद्धार कर सकता है ! एक ही ब्यक्ति आप का मित्र और शत्रु भी है और वह आप स्वयं है !!!
व्यक्ति पूजा देश और समाज दोनों के लिए वन्च्निया नहीं है! यह बात सच है कि दुसरे ब्यक्ति हमें श्रेष्ठ कार्यो के लिए प्रोत्साहित करते है! ब्यक्ति प्रेरणा का केंद्र बने, न कि सुख देने का माध्यम ! आपके कर्मो का उत्तरदायित्व आप पर है! यह बात यदि आप नहीं समझ पायेगे, तो दस साल बाद जरुर समझ जायेगे! दूसरो में श्रेष्ठता ढूढने कि विडंबना देश ही नहीं, घर कि भी हो सकती है ! घर को चलाने का सारा दारोमदार एक ही ब्यक्ति पर थोप दिया जाता है! सारे निर्णय, सारे फैसले एक ही ब्यक्ति करने लगे, तो या तो दुसरे लोग आलसी हो जायेगे या फिर अन्दर ही अन्दर बिचलित होते रहेगे! गीता में भगवान श्रीकृष्ण घर, देश समाज को चलाने कि अनूठी विधि बताते है! श्रीकृष्ण हर कर्म को यज्ञ की भाती मानते है! हवन कुंड चाहे छोटा हो या बड़ा, हम सब लोगो को अपनी आहुति तो देनी ही पड़ेगी! यदि घर रूपी हवन कुंड में एक ही ब्यक्ति अच्छे भाव, सोच, इच्छा, अथवा कर्म कि आहुति डाले तो घर में कभी भी सुख शांति या समृधि नहीं आ पायेगी! इसी तरह देश रूपी हवन कुंड में सभी लोग सेवा, प्रेम, ज्ञान, तथा देशभक्ति रूपी आहुति डाले तो, देश विकास के पथ पर जरुर अग्रसर होगा !!!!!!!
आचार्य शिवेंद्र नागर
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