पढो तो एसे पढो भाग -2



1- सकारात्मक भावो के साथ रहने पर आप जो काम करते है, वे बहुत सहजता के साथ हो जाते है !

2 - आप तभी पढ़े जब मन प्रसन्न हो! दु:खी मन से की गई पढाई एक प्रकार से चट्टान पर की जाने वाली जुताई के समान लगभग व्यर्थ है !

3 - हम जो कुछ भी पढ़ते है, यदि उसे याद रखना चाहते है, तो येसा केवल स्वीकार्य- भाव के तहत ही हो सकता है !

4 - यदि गिरती हुई धारा से प्यास बुझानी है, तो धारा के निचे ही अपना हाथ करना होगा !

5 - श्रद्धा भाव का बहुत गहरा संबंध विश्वास से भी होता है !

6 - जब भी कोई पुस्तक पढ़े पढने से पहले उसके लेखक के बारे में अवश्य पढ़े !

7 - आप जब भी कुछ पढ़े अपने को अंदर से बिलकुल खाली करके पढ़े !

8 - जरूरत अधिक से अधिक पढने की नही होती बल्कि जरूरत होती है आवश्यक ज्ञान को सही तरीके से पढने की और इसके लिए मनोरंजन अनिवार्य है !

9 - हमारा मस्तिष्क मनोरंजन के बाद ताजा हो जाता है उसकी ग्रहण करने की क्षमता बढ़ जाती है !

10 - अल्हड़पन नशा एवं अन्य घटिया तरीको से जो मनोरंजन होता है, वह मूलत: मन का रंजन न होकर मन का पतन होता है ! मनोरंजन का अर्थ है - स्वस्थ रंजन !

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