सुजाता पाटील द्वारा लिखी गयी कविता

हम ना समझे थे बात इतनी सी थी,
लाठी हाथ में थी, पिस्तौल कमर पे थी,
गाड़िया फुकी थी, आँखे नशीली थी,
धक्का देते उनको, तो ओ भी जलते थे,
हम ना समझे थे बात इतनी सी  !!

होसला बुलंद था, इज्जत लुट रही थी,
गिराते एक-एक को, क्या जरूरत थी इशारों की,
हम ना समझे थे बात इतनी सी  !!

हिम्मत की गद्दारों ने, अमर ज्योति हाथ लगाने की,
काट देते उनके हाथ तो फरियाद किसी की भी ना होती,
हम ना समझे थे बात इतनी सी  !!

भूल गये ओ रमजान, भूल गये ओ इंसानियत,
घाट उतार देते एक-एक को,
अरे क्या जरूरत थी किसी को डरने की,
संगीन लाठी तो आपके ही हाथ में थी,
हम ना समझे थे बात इतनी सी  !!

हमला तो हमपे था, जनता देख रही थी,
खेलते गोलियों की होली तो,
जरूरत ना पड़ती, नवरात्रि में रावण जलाने की,
रमजान के साथ-साथ, दिवाली भी होती,
हम ना समझे थे बात इतनी सी  !!

सांप को दूध पिलाकर,
बात करते है हम भाई चारे की,
ख्वाब अमर जवानो के,
और जनता भी डरी-डरी सी,
हम ना समझे थे बात इतनी सी  !! 
--->> by- सुजाता पाटील  
पुलिस निरीक्षक,
मुंबई 

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