Srimad Bhagwat Geeta Adhyay 3 Karmayog shloka 9 in hindi



अध्याय 3 : कर्मयोग, श्लोक 9
श्रीविष्णु के लिए यज्ञ रूप में कर्म करना चाहिए, अन्यथा कर्म के द्वारा इस भौतिक जगत् में बन्धन उत्पन्न होता है | अतः हे कुन्तीपुत्र! उनकी प्रसन्नता के लिए अपने नियत कर्म करो | इस तरह तुम बन्धन से सदा मुक्त रहोगे |

यज्ञार्थात्कर्मणोSन्यत्र लोकोSयं कर्मबन्धनः |

तदर्थं कर्म कौन्तेय मुक्तसङ्गः समाचर || ९ ||

यज्ञ-अर्थात् – एकमात्र यज्ञ या विष्णु के लिए किया गया; कर्मणः – कर्म की अपेक्षा; अन्यत्र – अन्यथा; लोकः – संसार; अयम् – यह; कर्म-बन्धनः – कर्म के कारण बन्धन; तत् – उस; अर्थम् – के लिए; कर्म – कर्म; कौन्तेय – हे कुन्तीपुत्र; मुक्त-सङ्गः – सङ्ग (फलाकांक्षा) से मुक्त; समाचर – भलीभाँति आचरण करो |
 
भावार्थ
श्रीविष्णु के लिए यज्ञ रूप में कर्म करना चाहिए, अन्यथा कर्म के द्वारा इस भौतिक जगत् में बन्धन उत्पन्न होता है | अतः हे कुन्तीपुत्र! उनकी प्रसन्नता के लिए अपने नियत कर्म करो | इस तरह तुम बन्धन से सदा मुक्त रहोगे | 
 
तात्पर्य
चूँकि मनुष्य को शारीर के निर्वाह के लिए कर्म करना होता है, अतः विशिष्ट सामाजिक स्थिति तथा गुण को ध्यान में रखकर नियत कर्म इस तरह बनाये गए हैं कि उस उद्देश्य की पूर्ति हो सके | यज्ञ का अर्थ भगवान् विष्णु है | सारे यज्ञ भगवान् विष्णु की प्रसन्नता के लिए हैं | वेदों का आदेश है – यज्ञो वै विष्णुः | दुसरे शब्दों में, चाहे कोई निर्दिष्ट यज्ञ सम्पन्न करे या प्रत्यक्ष रूप से भगवान विष्णु की सेवा करे, दोनों से एक ही प्रयोजन सिद्ध होता है, अतः जैसा कि इस श्लोक में संस्तुत किया गया है, कृष्णभावनामृत यज्ञ ही है | वर्णाश्रम-धर्म का भी उद्देश्य भगवान् विष्णु को प्रसन्न करना है | वर्नाश्रमाचारवता पुरुषेण परः पुमान् | विष्णुराराध्यते (विष्णु पुराण ३.८.८) |
अतः भगवान् विष्णु की प्रसन्नता की लिए कर्म करना चाहिए | इस जगत् में किया जाने वाला अन्य कोई कर्म बन्धन का कारण होगा, क्योंकि अच्छे तथा बुरे कर्मों के फल होते हैं और कोई भी फल कर्म करने वाले को बाँध लेता है | अतः कृष्ण (विष्णु) को प्रसन्न करने के लिए कृष्णभावनाभावित होना होगा और जब कोई ऐसा कर्म करता है तो वह मुक्त दशा को प्राप्त रहता है | यही महान कर्म कौशल है और प्रारम्भ में इस विधि में अत्यन्त कुशल मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है | अतः भगवद्भक्त के निर्देशन में या साक्षात् भगवान् कृष्ण के प्रत्यक्ष आदेश के अन्तर्गत (जिनके अधीन अर्जुन को कर्म करने का अवसर मिला था) मनुष्य को परिश्रमपूर्वक कर्म करना चाहिए | इन्द्रियतृप्ति के लिए कुछ भी नहीं किया जाना चाहिए, अपितु हर कार्य कृष्ण की प्रसन्नता (तुष्टि) के लिए होना चाहिए | इस विधि से न केवल बन्धन से बचा जा सकता है, अपितु इससे मनुष्य को क्रमशः भगवान् की वह प्रेमभक्ति प्राप्त हो सकेगी, जो भगवद्धाम को ले जाने वाली है |

Related Post :-
Book खरीदने के लिए click करे :- श्रीमद्भगवत गीता 
Name पे Click करे :- 
Online Shopping Website :www.crazyshopi.com 


अगर आप की कलम भी कुछ कहती है तो आप भी अपने लेख हमे भेज सकते है ! हमारा Email id - gauravamit93@gmail.com ... 
निवेदन   - अगर आप को ये पोस्ट अच्छा लगा हो तो आप हमे comment के माध्यम से जरुर बताये ! दोस्तों आप से उम्मीद करता हु कि इस blog को आप सभी follow/join करेगे ! ! .. धन्यबाद ....
"जय हिन्द जय भारत''  
Previous
Next Post »

1 comments:

Click here for comments
Info Hub
admin
July 5, 2018 at 1:27 AM ×

संपूर्ण भगवद् गीता पढ़ने के लिए डाउनलोड कीजिये

https://play.google.com/store/apps/details?id=com.infohub.bhagavadgitainhindi

Congrats bro Info Hub you got PERTAMAX...! hehehehe...
Reply
avatar

आप अपने सुझाव हमें जरुर दे ....
आप के हर सुझाव का हम दिल से स्वागत करते है !!!!! ConversionConversion EmoticonEmoticon