भगवत गीता के उपदेश सबसे बड़े धर्मयुध्द महाभारत की रणभूमि कुरुक्षेत्र के युद्ध में अपने शिष्य अर्जुन को भगवान श्रीकृष्ण ने दिए थे जिसे हम गीता सार भी कहते है !आज 5 हजार साल से भी ज्यादा वक्त बीत गया है, लेकिन गीता के उपदेश आज भी हमारे जीवन में उतनेही प्रासंगिक है ! तो चलिए आगे पढ़ते है गीता सार
- क्यों ब्यर्थ की चिंता करते हो? किससे व्यर्थ डरते हो? कौन तुम्हे मार सकता है? आत्मा न पैदा होती है न मरती है !
- जो हुआ वह अच्छा हुआ, जो रहा है, वह अच्छा हो रहा है, जो होगा वह भी अच्छा ही होगा! तुम भुत का पश्चाताप न करो ! भविष्य की चिंता न करो ! वर्तमान चल रहा है !
- तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो ? तुम क्या लाये थे, जो तुमने खो दिया? तुमने क्या पैदा किया था, जो नाश हो गया? न तुम कुछ ले के आए, जो लिया यही से लिया ! जो दिया यही पर दिया ! जो लिया इसी (भगवान) से लिया! जो दिया, इसी को दिया !
- खाली हाथ आए थे खाली हाथ चले जायेगे ! जो आज तुम्हारा है, कल और किसी का था, परसों किसी और का होगा ! तुम इसे अपना समझ कर मग्न हो रहे हो! बस यही प्रसन्नता तुम्हारे दुःख का कारण है !
- परिवर्तन संसार का नियम है ! जिसे तुम मृत्यु समझते हो, वही तो जीवन है ! एक क्षण में तुम करोडो के स्वामी बन जाते हो, दुसरे ही क्षण में तुम दरिद्र हो जाते हो ! मेरा तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया, मन से मिटा दो, फिर सब तुम्हारा है तुम सबके हो!
- न यह शरीर तुम्हारा है, न तुम शरीर के हो! यह अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश से बना है और इसी में मिल जायेगा! परन्तु आत्मा स्थिर है- फिर तुम क्या हो ?
- तुम अपने आप को भगवान को अर्पित करो! यही सबसे उत्तम सहारा है! जो इसके सहारे को जानता है वह भय चिंता शोक से सर्वदा मुक्त है!
- जो कुछ भी तू करता है,उसे भगवान को अर्पण करता चल! ऐसा करने से सदा जीवन-मुक्त का आनंद अनुभव करेगा
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