अध्याय-3 कर्मयोग
श्लोक 16
एवं प्रवर्तितं चक्रं नानुवर्तयतीह यः !आघायुरिन्द्रियारामो मोघं पार्थ स जीवति !! १६ !!
एवम् - इस प्रकार; प्रवर्तितम - वेदों द्वारा स्थापित; चक्रम् - चक्र; न - नहीं;
आनुवर्तयती - ग्रहण करता; इह - इस जीवन में; यः - जो; अघ-आयुः - पाप पूर्ण जीवन है जिसका; इन्द्रिय-आरामः- इंद्रियासक्त; मोघम - वृथा; पार्थ - हे पृथापुत्र(अर्जुन); सः - वह; जीवति - जीवित रहता है!
भावार्थ:
वेदों में नियमित कर्मो का विधान है और ये साक्षात् श्रीभगवान(परब्रम्ह) से प्रकट हुए है! फलतः सर्वव्यापी ब्रम्ह यज्ञकर्मो में सदा स्थिर रहता है!
तात्पर्य:
इस श्लोक में यज्ञार्थ-कर्म अर्थात कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए कर्म की आवश्यकता को भलीभातिं विवेचित किया गया है! यदि हमें यज्ञ-पुरुष विष्णु के परितोष के लिए कर्म करने है तो हमें ब्रम्ह या दिव्य वेदों से कर्म की दिशा प्राप्त करनी होगी! अतः सारे वेद कर्मा देशो की संहिताएँ है! वेदों के निर्देश के बिना किया गया कोई भी कर्म विकर्म या आवैध अथवा पाप पूर्ण कर्म कहलाता है! अतः कर्मफल से बचने के लिए सदैव वेदों से निर्देश के अंतर्गत कार्य करना होता है उसी प्रकार भगवान के परम राज्य के निर्देश में कार्य करना चाहिए! वेदों में ऐसे निर्देश भगवान के श्र्वास से प्रत्यक्ष प्रकट होते है!
कहा गया है- अस्य महतो भूतस्य निश्र्वासितं एतद् यद्ऋग्वेदो यजुर्वेदः सामवेदो थर्वाङ्गिरसः "चारो वेद - ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद- भगवान के श्र्वास से अद्भुत है!" (बृहराण्य क उपनिषद ४.५ ११)
ब्रम्हसंहिता से प्रमाणित होता है कि सर्व शक्तिमान होने के कारण भगवान अपने श्र्वास के द्वारा बोल सकते है, अपनी प्रतेक इन्द्रिय के द्वारा अन्य समस्त इन्द्रियो के कार्य सम्पन्न कर सकते है, दुसरे शब्दों में भगवान अपनी निःश्र्वास के द्वारा बोल सकते है और वे अपने नेत्रों से गर्वधान कर सकते है! वस्तुतः यह कहा जा सकता है कि उन्होंने प्रकृति पर दृष्टिपात किया और समस्त जीवो को गर्भस्थ किया! इस तरह प्रकृति के गर्भ में बुध्द्जिवो को प्रविष्ट करने के पश्चात् उन्होंने उन्हें वैदिक ज्ञान के रूप में आदेश दिया, जिससे वे भगवध्दाम वापस जा सके! हमें यह सदैव स्मरण रखना चाहिए कि प्रकृति में सारे बुध्दजीव भौतिक भोग के लिए इच्छुक रहते है! किन्तु वैदिक आदेश इस प्रकार बनाये गए है कि मनुष्य अपनी विकृत इच्छाओ की पूर्ति कर सकता है तथा कथित सुख भोग पूरा करके भगवान के पास लौट सकता है! बुध्द्जिवो के लिए मुक्ति प्राप्त करने का सुनहरा अवसर होता है, अतः उन्हें चाहिए कि कृष्ण भावनाभावित होकर यज्ञ-विधि का पालन करे! यहा तक कि वैदिक आदेशो का पालन नहीं करते वे भी कृष्णभावनामृत के सिध्दान्तो को ग्रहण कर सकते है जिससे वैदिक यज्ञो या कर्मो की पूर्ति हो जायेगी!
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